लॉकडाउन में लगातार अधिकतर प्रवासी मजदूर अपने घरों को बिना किसी सुख सुविधा के जाने को मजबूर है। ऐसे में लगातार प्रवासी मजदूरों की मार्मिक तस्वीरें सामने आ रही है और ये सिलसिला अभी भी जारी है। प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की इससे मार्मिक तस्वीर शायद पहले देखने में ना आई हो। मध्य प्रदेश से प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की एक मार्मिक तस्वीर सामने आई है, जिसमें एक मजबूर पिता 800 किमी दूर से अपनी नन्ही बेटी को हाथ से बनी गाड़ी पर खींचकर लाता दिख रहा है। गाड़ी के आगे उसकी गर्भवती पत्नी चल रही है। बालाघाट का एक मजदूर जो कि हैदराबाद में नौकरी करता था, 800 किलोमीटर दूर से एक हाथ से बनी लकड़ी की गाड़ी में बैठा कर अपनी 8 माह की गर्भवती पत्नी के साथ अपनी 2 साल की बेटी को लेकर गाड़ी खींचता हुआ बालाघाट पहुंच गया। दरअसल, हैदराबाद में रामू को जब काम मिलना बंद हो गया तो वापसी के लिए उसने कई लोगों से मिन्नतें कीं. लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। तब उसने पैदल ही घर लौटने का इरादा किया। कुछ दूर तक तो रामू अपनी दो साल की बेटी को गोद में उठाकर चलता रहा और उसकी गर्भवती पत्नी सामान उठाकर। लेकिन यह कोई 10-15 किमी का नहीं बल्कि 800 किलोमीटर का सफर था। रास्ता लंबा होने के कारण रास्ते में ही लकड़ी और बांस के टुकड़े बीन उनसे एक गाड़ी बनाई और उसे खींचता हुआ अपनी मासूम बेटी को लिए वह 800 किलोमीटर दूर पैदल चला आया।
बालाघाट का एक #मजदूर जो कि हैदराबाद में नौकरी करता था 800 किलोमीटर दूर से एक हाथ से बनी लकड़ी की गाड़ी में बैठा कर अपनी 8 माह की गर्भवती पत्नी के साथ अपनी 2 साल की बेटी को लेकर गाड़ी खींचता हुआ बालाघाट पहुंच गया @ndtvindia @ndtv #modispeech #selfreliant #Covid_19 pic.twitter.com/0mGvMmsWul
— Anurag Dwary (@Anurag_Dwary) May 13, 2020
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रामू ने रास्ते में ही बांस बल्लियों से सड़क पर खिसकने वाली गाड़ी बनाई। उस गाड़ी पर सामान रखा और दो साल की बेटी को उसपर बैठाया। बेटी के पैरों में चप्पल तक नहीं थी। फिर उस गाड़ी को रस्सी से बांधा और उसे खींचते हुए 800 किलोमीटर का सफर 17 दिन में पैदल तय किया। बालाघाट की रजेगांव सीमा पर जब वह पहुंचे तो वहां मौजूद पुलिसवालों और रजेगांव सीमा पर जवानों ने इस दंपति को आते देखा। मासूम बिटिया के पैरों पर चप्पल तक ना थी पुलिस ने उसे खाने को बिस्किट और चप्पल दी और फिर यहां से उसके घर तक एक निजी गाड़ी का बंदोबस्त भी किया।
मजदूर ने बताया कि वह घर वापसी के लिए तमाम मिन्नतें कर जब थक गया तो वह पैदल ही चल पड़ा। प्रवासी मजदूरों की तकलीफ देखते ही बनती है। रोजगार नहीं, खाने को जरिया नहीं, आने का साधन नहीं, ऐसे में कैसे भी घर पहुंच जाएं यह मजबूरी उन्हें सैकड़ों किलोमीटर सड़कें नापने मजबूर कर रही है। लांजी के एसडीओपी नितेश भार्गव ने इस बारे में बताया कि हमें बालाघाट की सीमा पर एक मजदूर मिला जो अपनी पत्नी धनवंती के साथ हैदराबाद से पैदल आ रहा था।
साथ में दो साल की बेटी थी जिसे वह हाथ की बनी गाड़ी से खींचकर यहां तक लाया था। हमने पहले बच्ची को बिस्किट दिए और फिर उसे चप्पल लाकर दी। फिर निजी वाहन से उसे उसके गांव भेजा।